जाने बिहार में कब है सतुआन और क्यों है इसका महत्व

न्यूज डेस्क:    भारत को विभिन्न संस्कृति सभ्यता और उत्सवों के कारण पर्वों और त्योहारों का देश कहा जाता है। इसीलिए शायद कहा भी जाता है कि भारत में कदम कदम पर भाषा,संस्कृति,रीति -रिवाज का विभिन रूप देखने को मिलता है।

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गर्मी के आगमन से पहले उत्तर भारत में एक पर्व मनाया जाता है सतुआन
सतुआन बिहार झारखंड पूर्वी उत्तर प्रदेश समेत उत्तरी भारत के अधिकतम राज्यों में मनाए जाने वाला यह पर्व है। एक तरह से कहा जाए तो लोग इस पर्व को गर्मी आने का संदेश मानते है। सतुआन पर्व मेष संक्रांति के दिन मनाया जाता है। इस दिन सूर्य मीन राशि से मेष राशि में प्रवेश करता है। इस दिन भगवान को भोग के रूप में सतु अर्पित किया जाता है और सतु का प्रसाद खाया जाता है। यह खास त्यौहार बिहार,झारखंड, उत्तर प्रदेश समेत मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाता है। बिहार के मिथिलांचल में इस पर्व को लेकर कहा जाता है कि मिथिला राज में आज से ही नए वर्ष का प्रारंभ होता है।

कब मनाया जाता हैं सतुआन
सतुआन पर्व बैसाख माह के कृष्ण पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। माना जाता है कि इस दिन सूर्य भगवान अपनी उत्तरायण की आधी परिक्रमा को पूरी कर लेते हैं। हर साल यह पर्व 14 अप्रैल को मनाया जाता है। सतुआन के बाद से बिहार में नए फसलों में जैसे चना गेहूं इत्यादि जिससे सतु बनता है, उसे खाना शुरू कर देते है। पूर्वांचल क्षेत्र में सतुआन पर्व के आगमन से सतु का सेवन नियमित करते है। गर्मी के मौसम में सतु स्वास्थ्य के लिए लाभदायक भी होता है।

दक्षिण भारत में अलग नाम से मनाया जाता है यह पर्व
आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक समेत दक्षिण भारत के कुछ राज्यों में यह पर्व को विषु कानी के नाम से मनाया जाता है। यह दक्षिण भारत में नव वर्ष के आगमन के रूप में मनाया जाता है। इस दिन लोग अपने नए फसलों के अनाज का प्रसाद बनाकर भगवान विष्णु को भोग लगाते है और प्रसाद खाते है। इस दिन दक्षिण भारत में नई फसलों का विभिन्न प्रकार के अनाज से प्रसाद बनाते हैं। लोग नए कपड़े पहनकर भगवान विष्णु का दर्शन करते हैं।

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