न्यूज डेस्क: बिहार, झारखंड समेत पूर्वी उत्तर प्रदेश में आस्था का महापर्व चैती छठ आज नहाए खाए के साथ शुरुआत हो गया है। चार दिवसीय यह महापर्व चैत्र शुक्ल पक्ष दिन शुक्रवार से शुरुआत हो चुका है। ऐसे तो यह महापर्व पूर्वांचल के साथ-साथ उत्तर भारत का पर्व माना जाता है। लेकिन संस्कृति और सभ्यता से घुले – मिले इस भारत भूमि में आज यह महापर्व पूरे भारत और विदेश में बसे भारतीय भी पूरे तन मन और धन से इस महापर्व विधि विधान के साथ करते हैं। छठ महापर्व करने वाले व्रती पूरे संयम एवं पवित्रता के साथ करते है।
नहाए खाए के साथ शुरू हो जाता है छठ महाव्रत
नहाए खाए के दिन छठ व्रती गंगा नदी, नदी, जलाशय में स्नान कर या अपने घर में गंगा जल मिलाकर स्नान, पूजा करने के बाद प्रसाद के रूप में अरवा चावल, सेंधा नमक से बनी चना का दाल, लौकी की सब्जी, आंवला की चटनी ग्रहण के बाद चार दिवसीय अनुष्ठान का संकल्प लेते है। नहाए खाए के अगले दिन खरना होता है। खरना के दिन छठ व्रती शुद्ध दूध और गुड़ के साथ पका नए धान चावल का खीर होता है। छठ व्रती खीर महाप्रसाद ग्रहण कर 36 घंटे का निर्जला उपवास करते है। उसके अगले दिन डूबते यानी अस्तालचलगामी सूर्य को अर्घ्य एवं उसके अगले दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ महापर्व पूर्ण होता है।
आखिर क्यूं है छठ महापर्व का महत्व
छठ महापर्व की परंपरा और शुरुआत को लेकर कई कथाएं प्रचलित है। एक कथा यह है की भगवान राम, लक्ष्मण और माता सीता जब 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटे तब रावण वध से मुक्त होने के लिए ऋषि मुनियों के आदेश पर राजसूर्य यज्ञ का आयोजन किए। भगवान राम पूजा के लिए मुग्दल ऋषि को आमंत्रित किए थे, मुग्दल ऋषि ने ही माता सीता को सूर्य की उपासना करने के लिए कहे थे। इसके बाद माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव भगवान की पूजा की थी। सप्तमी को सूर्योदय के समय फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव से आशीर्वाद प्राप्त किया था।
महाभारत काल से भी माना जाता है छठ पर्व का प्रारंभ
हिंदू मान्यता के अनुसार कथा प्रचलित है कि छठ पर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। माना जाता है की इस पर्व की शुरुआत सूर्य पुत्र कर्ण द्वारा शुरू किया गया है। इस पर्व को सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने सूर्य की पूजा करके शुरू किया था। कहा जाता है कि कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे और वो रोज घंटों तक पानी में खड़े होकर उन्हें अर्घ्य देते थे। सूर्य की कृपा से ही वह महान योद्धा बने। आज भी छठ में अर्घ्य दान की यही परंपरा प्रचलित है।
द्रौपदी ने भी रखा छठ व्रत
छठ व्रत के बारे में एक मान्यता है कि, कौरवों द्वारा पांडव का राज पाठ जब छीन लिया गया। और पांडव जब वनवास कर रहे थे तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था।इस व्रत से उनकी मनोकामना पूरी हुई और पांडव के सब राज पाठ मिल गए। लोक परंपरा के अनुसार सूर्य देव और छठी मईया का संबंध भाई बहन का इसीलिए छठ महापर्व के मौके पर छठी मईया के साथ सूर्य देव को आराधना करना फलदाई माना जाता है।