अमेरिकी वीज़ा नियमों में कड़ा रुख
अमेरिका ने अपनी वीज़ा नीति में एक अहम बदलाव करते हुए उन लोगों पर सख्ती बढ़ा दी है जो गाजा पट्टी की यात्रा कर चुके हैं। अब ऐसे सभी विदेशी नागरिकों के सोशल मीडिया अकाउंट्स की गहन जांच की जाएगी, जो 1 जनवरी 2007 के बाद गाजा गए हैं। यह नीति केवल टूरिस्ट वीज़ा तक सीमित नहीं है, बल्कि छात्र, डिप्लोमैटिक, और अन्य सभी प्रकार के वीज़ा पर भी लागू होगी। साथ ही, जो गैर-सरकारी संगठनों (NGOs) से जुड़े लोग या स्वयंसेवक गाजा में काम कर चुके हैं, वे भी इसकी जद में आएंगे।
राष्ट्रीय सुरक्षा बनाम स्वतंत्रता का सवाल
अमेरिकी विदेश विभाग का तर्क है कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है। अगर किसी आवेदक के सोशल मीडिया या डिजिटल गतिविधियों में कोई ऐसा कंटेंट पाया जाता है, जिसे सुरक्षा के लिए खतरा माना जाए, तो उसका वीज़ा आवेदन खास समीक्षा प्रक्रिया से गुजरेगा। वर्ष 2025 तक 300 से अधिक वीज़ा पहले ही रद्द किए जा चुके हैं, जिनमें बड़ी संख्या में छात्र वीज़ा शामिल हैं। यह स्थिति उन छात्रों के लिए और भी चिंताजनक हो गई है जिन्होंने गाजा में इजराइली कार्रवाइयों की आलोचना की थी।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खतरा?
यह नीति अमेरिका के लोकतांत्रिक मूल्यों पर सवाल खड़ा कर रही है। अमेरिकी संविधान भले ही नागरिकों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता हो, लेकिन यह नया नियम एक प्रकार की ‘डिजिटल सेंसरशिप’ की तरह देखा जा रहा है। कई शिक्षाविद, मानवाधिकार संगठन और संयुक्त राष्ट्र तक इस नीति को अभिव्यक्ति की आज़ादी का उल्लंघन मानते हैं। उनका मानना है कि यह छात्रों और एक्टिविस्ट्स को डराने और चुप कराने का प्रयास है, जिससे विदेशी नागरिकों में असुरक्षा और भय का वातावरण बन सकता है।
हार्वर्ड विश्वविद्यालय पर सीधा प्रहार
अमेरिकी प्रशासन ने हार्वर्ड विश्वविद्यालय को भी खास तौर पर निशाने पर लिया है, जहां गाजा संघर्ष के दौरान छात्रों ने ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन किए थे। सरकार ने हार्वर्ड से पॉलिसी में बदलाव की मांग की, जिसमें अमेरिकी मूल्यों के खिलाफ माने जाने वाले छात्रों की स्क्रीनिंग और यहूदी विरोधी गतिविधियों पर सख्ती शामिल है। इन शर्तों के न मानने पर $2 बिलियन की फंडिंग रोकने की धमकी दी गई है। सवाल यह है कि क्या यह कदम अमेरिका के संविधान और स्वतंत्रता के सिद्धांतों के खिलाफ है?