GUJRAT में CONGRESS का 84वां अधिवेशन: लोकतंत्र, संविधान और सामाजिक न्याय की नई लड़ाई

गुजरात के अहमदाबाद में कांग्रेस का दो दिवसीय 84वां अधिवेशन ऐतिहासिक उत्साह और ऊर्जा के साथ संपन्न हुआ। अधिवेशन में देशभर से आए 1700 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने भाग लिया। इस दौरान राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे और सोनिया गांधी की मौजूदगी ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं में नया जोश भर दिया। अधिवेशन का उद्देश्य केवल राजनीतिक चर्चा तक सीमित नहीं रहा, बल्कि यह देश की संवैधानिक व्यवस्था और सामाजिक समरसता को बचाने का मंच भी बना। गुजरात कांग्रेस ने शानदार व्यवस्थाएं कीं – 3000 लोगों की क्षमता वाले डोम, 2000 होटल कमरे और कार्यकर्ताओं की कार सेवा ने इसे एक भव्य आयोजन में बदल दिया।

राहुल गांधी ने अपने भाषण में केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने वक्फ संशोधन बिल को संविधान पर हमला बताया और आरोप लगाया कि RSS अब क्रिश्चियन समुदाय को निशाना बनाने की तैयारी में है। उन्होंने कहा कि यह बिल धार्मिक स्वतंत्रता का हनन है और यह हर नागरिक को समझना चाहिए। राहुल ने भारत जोड़ो यात्रा को जनसहयोग का प्रतीक बताया और कहा कि “बिना आप लोगों के मैं कुछ नहीं कर सकता।” उन्होंने साफ किया कि कांग्रेस का संघर्ष गरीबों, दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और पिछड़ों के अधिकारों के लिए है – और यह लड़ाई सिर्फ सत्ता के लिए नहीं, विचारधारा की है।

मल्लिकार्जुन खड़गे ने अधिवेशन में ईवीएम पर सवाल उठाते हुए बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांग की। उन्होंने कहा कि सरकार ने ऐसी तकनीकें बनाई हैं जिससे उन्हें फायदा और विपक्ष को नुकसान होता है। खड़गे ने मोदी सरकार पर आरोप लगाया कि वह सार्वजनिक संस्थाओं को निजी हाथों में सौंप रही है और संविधान की मूल भावना को कमजोर कर रही है। उन्होंने पूछा कि जो दलित हिंदू हैं, उन्हें मंदिरों में प्रवेश क्यों नहीं दिया जाता? क्या ये संविधान की भावना के खिलाफ नहीं है?

अधिवेशन में जातिगत जनगणना को लेकर भी बड़ा ऐलान हुआ। राहुल गांधी ने कहा कि कांग्रेस केंद्र में आने के बाद जाति आधारित जनगणना का कानून पास कराएगी। उन्होंने कहा कि तेलंगाना जैसे राज्यों में OBC और दलितों की भागीदारी बढ़ाई गई है और अब यही मॉडल पूरे देश में लागू किया जाएगा। राहुल ने स्पष्ट किया कि दलित, आदिवासी, पिछड़े समाज की भागीदारी के बिना विकास अधूरा है। साथ ही अग्निवीर योजना, बेरोजगारी, शिक्षा, और आर्थिक अवसरों की असमानता जैसे मुद्दों पर सरकार को आड़े हाथों लिया।

कुल मिलाकर, कांग्रेस का यह अधिवेशन सिर्फ रणनीति तय करने का मंच नहीं था, बल्कि यह एक विचारधारा का उद्घोष था – संविधान बचाओ, समाज को जोड़ो और लोकतंत्र को पुनः मजबूत बनाओ। इस अधिवेशन से कांग्रेस ने साफ कर दिया है कि 2027 के चुनाव की तैयारी अब महज़ चुनावी अभियान नहीं, बल्कि देश की आत्मा को बचाने की लड़ाई होगी। संगठन के स्तर पर मजबूती, कार्यकर्ताओं का मनोबल और स्पष्ट नीतिगत दिशा – ये कांग्रेस को फिर से जनता के बीच एक मजबूत विकल्प के रूप में स्थापित करने के संकेत हैं।

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