“पहलगाम आतंकवादी हमला: एक बर्बर त्रासदी जिसने पूरे भारत को झकझोर दिया”

22 अप्रैल की शाम जम्मू-कश्मीर के खूबसूरत पहलगाम में एक दिल दहला देने वाली घटना घटी, जिसने देश को गहरे सदमे में डाल दिया। टूरिज्म सीजन के चरम पर, जब देश-विदेश से सैलानी घाटी की खूबसूरती निहारने आए थे, तभी आतंकियों ने अंधाधुंध फायरिंग कर दी। यह हमला महज आतंकी कार्रवाई नहीं, बल्कि एक सुनियोजित नरसंहार था। इस हमले में 26 निर्दोष लोगों की जान चली गई, जिनमें विभिन्न राज्यों के नागरिक शामिल थे।


हमले में जान गंवाने वाले लोगों की सूची को पढ़ते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं। महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार, कर्नाटक, गुजरात, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के साथ-साथ नेपाल और यूएई के नागरिक भी इस भयावह घटना का शिकार बने। इन सबका कसूर सिर्फ इतना था कि वे पहलगाम की शांति और सुंदरता के दीदार को आए थे। कानपुर के शुभम द्विवेदी से लेकर इंदौर के सुशील नाथ्याल और नेपाल के सुदीप न्यौपाने तक—हर नाम एक अधूरी कहानी, एक टूटा सपना है।


इस हमले ने देश की सुरक्षा व्यवस्था और इंटेलिजेंस सिस्टम पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। भारी सुरक्षा के बीच भी आतंकी इस टूरिस्ट हॉटस्पॉट तक कैसे पहुंचे? क्या खुफिया तंत्र पूरी तरह विफल रहा? क्या लोकल पुलिस और अन्य सुरक्षाबलों में समन्वय की कमी थी? सरकार और प्रशासन की जवाबदेही तय होनी चाहिए, क्योंकि 26 जानें कोई छोटी संख्या नहीं है। यदि इस पर ठोस कार्रवाई नहीं हुई तो देश के किसी भी कोने की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं मानी जा सकती।


देश आज शोक में डूबा है, लेकिन यह वक्त केवल संवेदना प्रकट करने का नहीं, बल्कि ठोस नीति और मजबूत सुरक्षा रणनीति पर अमल का है। जो 26 लोग इस हमले में मारे गए, उनके परिवारों की पीड़ा असहनीय है। सरकार को चाहिए कि वह इस घटना से सबक लेकर आतंकियों के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करे और पर्यटन स्थलों की सुरक्षा को प्राथमिकता दे। पहलगाम जैसे स्वर्ग को नरक बनने से रोकना अब केवल निंदा या श्रद्धांजलि से संभव नहीं, बल्कि कड़े कदम उठाने से ही होगा।

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