पटना की सियासत में गहराया रहस्य, कांग्रेस ने लिया चौंकाने वाला फैसला
बिहार की राजनीति में देर रात चौंकाने वाला घटनाक्रम देखने को मिला। आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस ने 40 जिलों में नए अध्यक्षों की नियुक्ति कर दी, जिससे सियासी हलकों में हलचल मच गई है। पार्टी नेतृत्व के इस बड़े फैसले को लेकर राजनीतिक गलियारों में कई सवाल उठ रहे हैं। यह फेरबदल क्यों किया गया? क्या कांग्रेस कोई बड़ा सियासी दांव खेलने जा रही है? इन सवालों के जवाब अभी रहस्यमय हैं, लेकिन इतना तय है कि प्रदेश कांग्रेस में कुछ बड़ा पक रहा है!
पटना के साथ पूरे बिहार में नए चेहरों को मौका, क्या यह मास्टरस्ट्रोक साबित होगा?
मंगलवार देर रात रहस्यमय तरीके से जारी आदेश के तहत पटना टाउन, पटना ग्रामीण-1 और पटना ग्रामीण-2 समेत कई जिलों में नए नेताओं को अहम जिम्मेदारी सौंपी गई। खास बात यह है कि पार्टी ने पुराने और युवा नेताओं का मिश्रण तैयार किया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि कांग्रेस किसी बड़े चुनावी रणनीति पर काम कर रही है। पटना टाउन का अध्यक्ष शशि रंजन को बनाया गया, जबकि कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर रंजीत कुमार को जिम्मेदारी दी गई। पटना ग्रामीण-1 की कमान सुमित कुमार सन्नी को मिली, जबकि कार्यकारी अध्यक्ष पद पर उदय कुमार चंद्रवंशी की तैनाती की गई। इसी तरह, पटना ग्रामीण-2 के अध्यक्ष गुरजीत सिंह और कार्यकारी अध्यक्ष नीतू निषाद बनाए गए।
भागलपुर से गया तक, बदलाव की आंधी में बह गए पुराने नेता!
सिर्फ पटना ही नहीं, पूरे बिहार में यह चौंकाने वाला बदलाव हुआ है। मुजफ्फरपुर में अरविंद मुकुल, भागलपुर में परवेज जमाल, गया में संतोष कुमार, नालंदा में नरेश अकेला और नवादा में सतीश कुमार को नए अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया है। दो कार्यकारी अध्यक्षों की भी घोषणा की गई, जिनमें शहाबुद्दीन रहमानी और उदय मांझी के नाम शामिल हैं।
अररिया, दरभंगा, कटिहार समेत अन्य जिलों में भी बदलाव की झड़ी लग गई। अररिया में शाद अहमद, दरभंगा में दयानंद पासवान, पूर्वी चंपारण में इंजीनियर शशि भूषण राय, गोपालगंज में ओमप्रकाश गर्ग, कटिहार में सुनील यादव को पदभार सौंपा गया। इसके अलावा, किशनगंज में इमाम अली और कार्यकारी अध्यक्ष शाहिबुल अख्तर बनाए गए।
क्या यह कांग्रेस का नया दांव या भीतरखाने की सियासी चाल?
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनाव से ठीक पहले इतने बड़े बदलाव के पीछे कोई गहरी सियासी रणनीति छिपी हो सकती है। कुछ का कहना है कि कांग्रेस अपने नए नेतृत्व के जरिए पार्टी में नई जान फूंकना चाहती है, जबकि अन्य इसे भीतरघात रोकने का प्रयास मान रहे हैं।
सहरसा, पूर्णिया, मधुबनी, समस्तीपुर समेत कई जिलों में भी बदलाव की लहर जारी है। सिवान में सुशील कुमार यादव, सुपौल में सूर्यनारायण मेहता, वैशाली में महेश प्रसाद राय, पश्चिम चंपारण में प्रमोद सिंह पटेल, औरंगाबाद में राकेश कुमार सिंह जैसे नए नाम सामने आए हैं।
बिहार की सियासत में इस उलटफेर का क्या असर होगा?
बिहार की राजनीति में कांग्रेस का यह फैसला भविष्य की सियासी चालों का संकेत हो सकता है। सवाल यह भी है कि पुराने नेताओं को हटाकर क्या कांग्रेस सही दांव खेल रही है या यह दांव उल्टा पड़ सकता है? क्या यह बदलाव पार्टी के अंदरूनी गुटबाजी को खत्म करेगा या फिर नई बगावत को जन्म देगा?