Allahabad High Court’s का फैसला: क्या ‘बलात्कार की कोशिश’ की नई परिभाषा गढ़ रहा है कानून?

 भूमिका: कानून की भाषा बनाम न्याय की भावना

क्या किसी लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ना, पायजामे का नाड़ा तोड़ना और जबरन खींचने की कोशिश करना बलात्कार की कोशिश नहीं है? इलाहाबाद हाईकोर्ट के हालिया फैसले ने इस सवाल को हवा दे दी है।

उत्तर प्रदेश के कासगंज जिले की एक 14 वर्षीय लड़की के साथ हुई जबरदस्ती को लेकर हाईकोर्ट ने कहा कि –

“सिर्फ प्राइवेट पार्ट पकड़ना और कपड़े खींचना बलात्कार की कोशिश नहीं माना जा सकता।”

यह फैसला आते ही सोशल मीडिया और कानूनी हलकों में बहस छिड़ गई कि क्या महिलाओं की सुरक्षा को लेकर न्यायपालिका लापरवाह हो रही है? या फिर कानून को सिर्फ उसकी लिखी हुई भाषा तक सीमित रखना सही है?


👉 पूरा मामला: जब न्याय ने खड़े किए सवाल

📍 घटना: 10 नवंबर 2021, उत्तर प्रदेश का कासगंज जिला
📍 पीड़िता: 14 साल की नाबालिग लड़की
📍 आरोपी: तीन युवक – पवन, आकाश और अशोक

क्या हुआ?
✔ लड़की अपनी मां के साथ जा रही थी।
✔ तीनों आरोपियों ने बाइक पर लिफ्ट देने का बहाना बनाया।
✔ सुनसान पुलिया पर ले जाकर उसके साथ जबरदस्ती करने लगे
उसके स्तन पकड़े, पायजामे का नाड़ा तोड़ा और पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश की।
✔ लड़की ने चीख-पुकार मचाई, तो लोग आ गए और आरोपी भाग निकले

💥 एफआईआर:
पुलिस ने आरोपियों पर धारा 376 (बलात्कार की कोशिश) और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 लगाई।

💥 निचली अदालत:
कोर्ट ने बलात्कार की कोशिश का केस सही माना और आरोपियों के खिलाफ समन जारी किया

💥 हाईकोर्ट का फैसला:
आरोपियों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील की और कोर्ट ने कहा कि –
🚫 “यह बलात्कार की कोशिश नहीं है, सिर्फ छेड़छाड़ का मामला है।”
🚫 “कपड़े खींचने और छूने से रेप का प्रयास साबित नहीं होता।”
🚫 “376 और पॉक्सो एक्ट की धारा 18 हटा दी जाए।”


👉 क्या यह फैसला अपराधियों को बच निकलने का रास्ता नहीं देता?

क्या किसी को खींचना, कपड़े फाड़ना और जबरन छूना बलात्कार की कोशिश नहीं माना जाएगा? अगर लड़की चिल्लाती नहीं, लोग नहीं आते, तो आगे क्या होता?

🔴 अगर किसी के घर में सेंधमारी हो लेकिन चोरी न हो, तो क्या उसे चोर नहीं माना जाएगा?
🔴 अगर कोई किसी की हत्या की योजना बनाए लेकिन पकड़ा जाए, तो क्या उसे छोड़ दिया जाएगा?
🔴 अगर लड़की की इज्जत पर हाथ डालना बलात्कार की कोशिश नहीं, तो फिर क्या है?

⚠️ यह फैसला कहीं न कहीं अपराधियों को यह संदेश दे सकता है कि –
“डरो मत! जब तक बलात्कार पूरा नहीं होता, तुम आसानी से छूट सकते हो!”


👉 कानूनी बहस: भाषा बनाम भावना

इस फैसले के बाद कानूनी विशेषज्ञ और सामाजिक कार्यकर्ता दो धड़ों में बंट गए

तर्क समर्थकों की राय विरोधियों की राय
कानूनी परिभाषा कानून को ठोस प्रमाण चाहिए। बलात्कार की कोशिश का इरादा साफ दिखता है।
सामाजिक प्रभाव अदालत कानून के अनुसार चलती है। यह फैसला अपराधियों को बढ़ावा देगा।
पीड़िता के अधिकार यह छेड़छाड़ का मामला है, रेप का नहीं। क्या लड़की पर हमला करना कोई छोटा अपराध है?

👉 महिलाओं की सुरक्षा के लिए कितना सही है यह फैसला?

देशभर में महिलाओं पर होने वाले अपराध बढ़ रहे हैं।
🚨 हर 16 मिनट में एक महिला का बलात्कार होता है।
🚨 हर दिन 100 से ज्यादा लड़कियां छेड़छाड़ और यौन हिंसा की शिकार होती हैं।

अब सोचिए –
😡 अगर लड़की चीखती नहीं, लोग नहीं आते, तो क्या होता?
😡 अगर रेप की कोशिश के लिए अब और क्या सबूत चाहिए?
😡 क्या आरोपी अब कानून की कमजोरी का फायदा उठाकर और बेखौफ नहीं होंगे?


👉 निष्कर्ष: क्या हमें कानून की नई परिभाषा चाहिए?

👉 अगर लड़की का नाड़ा तोड़कर उसे खींचना बलात्कार की कोशिश नहीं, तो क्या बलात्कार की कोशिश केवल पूरा बलात्कार होने के बाद साबित होगी?
👉 अगर न्यायपालिका ऐसे फैसले देती रही, तो क्या लड़कियों को कभी न्याय मिल पाएगा?
👉 क्या कानून को उसकी लिखी भाषा से ज्यादा, उसके मर्म को देखने की जरूरत नहीं है?

💥 यह फैसला एक मिसाल बन सकता है, लेकिन सवाल यह है – क्या यह मिसाल अपराध रोकने के लिए होगी या अपराधियों को बचाने के लिए?

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