पहलगाम हमला: अपने ही देश में डर का माहौल और बॉलीवुड की तीखी प्रतिक्रिया”

पहलगाम में आतंक की गूंज: क्या अब अपने ही देश में डर के साये में जीना होगा?

पहलगाम की हसीन वादियां, जो आमतौर पर सुकून और सैर-सपाटे के लिए जानी जाती हैं, अब आतंक की कहानियां सुना रही हैं। हाल ही में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। कायर आतंकियों ने निर्दोष टूरिस्ट्स पर हमला कर न केवल उनकी जान ली, बल्कि पूरे देश की आत्मा को भी जख्मी कर दिया। 16 लोगों की मौत और कई घायल, इस घटना ने हर भारतीय के दिल में एक ही सवाल पैदा कर दिया — “क्या अब अपने ही देश में डरकर जीना पड़ेगा?”

बॉलीवुड ने जताया गुस्सा: आतंक के खिलाफ एकजुट हुई फिल्म इंडस्ट्री

इस अमानवीय हमले के खिलाफ बॉलीवुड ने अपनी भावनाएं खुलकर सोशल मीडिया पर व्यक्त कीं। अभिनेता सोनू सूद ने हमले की कड़ी निंदा करते हुए लिखा कि सभ्य समाज में आतंक के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। अक्षय कुमार ने इसे “निर्दोषों की हत्या” बताते हुए प्रार्थना की कि इस पाप का अंत हो। गीतकार मनोज मुंतशिर की प्रतिक्रिया तीखी थी, जो सीधे उन लोगों पर तंज थी जो आतंक को धर्म या विचारधारा के चश्मे से देखते हैं। उनका क्रोधित बयान दर्शाता है कि यह हमला केवल शारीरिक नहीं, आत्मिक भी है।

राजनीति और सिनेमा की सीमा लांघती संवेदनाएं

भोजपुरी अभिनेता और सांसद रवि किशन की टिप्पणी ने एक सच्चाई को उजागर किया – “उन्होंने ना राज्य पूछा, ना भाषा, ना जाति। उन्होंने सिर्फ़ धर्म पूछा।” यह बयान न केवल इस आतंकी सोच की पोल खोलता है, बल्कि एक कटु सच्चाई भी सामने लाता है, जिसे समाज अक्सर नजरअंदाज कर देता है। अभिनेत्री हिना खान ने “पहलगाम… क्यों, क्यों, क्यों?” कहकर देश की पीड़ा को शब्द दिए, जो हर भारतीय के दिल में गूंज रही है।

ये हमला नहीं, हमारी आज़ादी पर हमला है

पहलगाम का यह आतंकी हमला एक व्यक्ति विशेष पर नहीं, बल्कि पूरे देश की आज़ादी, आत्मसम्मान और सुरक्षा की भावना पर हमला है। जब टूरिज़्म जैसा खूबसूरत और शांति से जुड़ा पहलू भी असुरक्षित महसूस कराने लगे, तो ये देश की आंतरिक सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े करता है। आम्रपाली दुबे जैसी कलाकारों की भावनाएं और शोएब इब्राहिम जैसे एक्टर्स का अनुभव बताता है कि यह हमला किसी के भी साथ कभी भी हो सकता है।

इंसाफ की मांग: अब डर नहीं, जवाब चाहिए

इस पूरे घटनाक्रम में सबसे ज़रूरी बात यह है कि सिर्फ़ शोक नहीं, अब जवाब की ज़रूरत है। आम्रपाली दुबे ने सवाल उठाया — “कब तक अपने ही देश में डर कर जिया जाएगा!” यह अब केवल एक भावनात्मक प्रश्न नहीं, बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर पूछी जाने वाली एक सख्त मांग बन चुकी है। इंसाफ चाहिए, जवाबदेही चाहिए और वह माहौल चाहिए जहां कोई अपने ही देश में डर के साये में ना जिए।

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