प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक ऐसा राजनीतिक दांव चला है जिससे देश की सियासत में बड़ा बदलाव आने वाला है। लंबे समय से विपक्ष खासकर राहुल गांधी, जातिगत जनगणना की मांग को लेकर सरकार पर दबाव बना रहे थे। अब खुद प्रधानमंत्री ने इस पर मुहर लगाकर विपक्ष को चौंका दिया है। चुनावी मौसम में आया यह फैसला न सिर्फ बिहार बल्कि पूरे देश में राजनीति की दिशा तय कर सकता है।
राहुल गांधी का यह बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है कि जब तक जातिगत जनगणना नहीं होगी, तब तक पिछड़े वर्गों को उनका पूरा हक नहीं मिल सकता। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने इसे चुनावी वादे के रूप में पेश किया था। लेकिन अब एनडीए सरकार के इस फैसले से उनका यह हथियार कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। सवाल उठ रहा है कि क्या राहुल गांधी की रणनीति पर पानी फिर गया है?
जातिगत जनगणना से सरकार को यह जानने में मदद मिलेगी कि देश की कौन सी जातियां कितनी संख्या में हैं और उन्हें किन क्षेत्रों में किन सुविधाओं की जरूरत है। इससे आरक्षण और सामाजिक योजनाओं में पारदर्शिता आएगी। जिन जातियों को अब तक नजरअंदाज किया गया है, उन्हें भी नीति निर्माण में जगह मिल सकेगी। यह कदम सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है।
बिहार जैसे राज्य जहां जाति आधारित राजनीति का खासा प्रभाव है, वहां इस फैसले के बड़े राजनीतिक मायने हैं। बीजेपी इस कदम से ओबीसी और दलित वोट बैंक को साधने की कोशिश कर सकती है। हालांकि कुछ जानकारों का मानना है कि इससे समाज में जातिवाद को बढ़ावा भी मिल सकता है। अब देखना यह है कि जनता इस फैसले को एक सामाजिक सुधार के रूप में देखती है या इसे एक चुनावी चाल मानती है?