बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा 2025: संघर्ष, मेहनत और उम्मीद की कहानी
बिहार बोर्ड मैट्रिक परीक्षा 2025 का रिजल्ट जारी हो चुका है, और इस बार भी टॉपर्स की कहानियाँ संघर्ष की मिसाल पेश कर रही हैं। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या हमारी शिक्षा प्रणाली वाकई इन होनहार छात्रों की मदद कर रही है, या फिर ये प्रतिभाएं केवल अपने अथक परिश्रम और आत्मसंघर्ष के बल पर आगे बढ़ रही हैं?
1. रंजन वर्मा: खेतों से निकलकर टॉपर बनने तक का सफर
भोजपुर के अगिआंव बाजार के रहने वाले रंजन वर्मा ने पूरे बिहार में पहला स्थान हासिल किया है। उन्होंने 500 में से 489 अंक प्राप्त किए हैं। लेकिन क्या यह उनकी मेहनत का ही नतीजा था, या फिर हमारे सिस्टम की बेरुखी का एक और उदाहरण?
रंजन के पिता का 2023 में ब्रेन हेमरेज से निधन हो गया था। इसके बाद उनकी माँ ने खेती करके न सिर्फ उनका बल्कि उनके बड़े भाई रंजीत का भी भविष्य संवारने की जिम्मेदारी उठाई। क्या एक मेधावी छात्र को पढ़ने के लिए संघर्ष करना चाहिए, या फिर सरकार को उनकी मदद के लिए आगे आना चाहिए?
2. साक्षी कुमारी: बढ़ई परिवार की बेटी बनी बिहार टॉपर
समस्तीपुर की साक्षी कुमारी ने भी 489 अंक लाकर बिहार में टॉप किया है। उनका परिवार गाँव-गाँव घूमकर फर्नीचर बनाने का काम करता है। उनके दादा बताते हैं कि पूरे परिवार की आजीविका इसी पर निर्भर है।
👉 सवाल यह उठता है कि क्या एक होनहार छात्रा को पढ़ाई के साथ-साथ अपने परिवार की आर्थिक स्थिति की चिंता करनी चाहिए?
👉 क्या सरकार और समाज को ऐसे बच्चों के लिए विशेष छात्रवृत्ति और सहायता नहीं देनी चाहिए?
3. सचिन कुमार राम: वेटर का बेटा, जिसने खुद अपनी पढ़ाई का खर्च उठाया
जमुई जिले के सिमरिया गाँव के रहने वाले सचिन कुमार राम ने मैट्रिक परीक्षा में 484 अंक (97.60%) हासिल कर राज्य में दूसरा स्थान प्राप्त किया है। उनके पिता रांची में एक रेस्टोरेंट में वेटर का काम करते हैं, जबकि माँ बीड़ी बनाने का काम करती हैं।
सचिन ने हार नहीं मानी और 5वीं से 9वीं तक के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठाया।
👉 क्या यह सरकार और समाज की जिम्मेदारी नहीं कि किसी मेधावी छात्र को अपनी पढ़ाई का खर्च खुद उठाने के लिए मजबूर न होना पड़े?
4. मोहित कुमार: बिना ट्यूशन के टॉप-3 में जगह बनाई
बांका जिले के बेलहर थाना क्षेत्र के रहने वाले मोहित कुमार ने मैट्रिक परीक्षा में 487 अंक के साथ तीसरी रैंक हासिल की। उनके पिता कोलकाता में ऑटो चलाते हैं, जिससे पूरे परिवार का भरण-पोषण होता है।
मोहित का कहना है कि उन्होंने कभी ट्यूशन नहीं ली और स्कूल के शिक्षकों के मार्गदर्शन से ही इस मुकाम तक पहुँचे।
👉 अगर सही दिशा-निर्देश मिले तो क्या बिहार के हजारों छात्र भी बिना ट्यूशन के बेहतर प्रदर्शन नहीं कर सकते?
👉 क्या शिक्षा व्यवस्था को कोचिंग केंद्रों की बजाय सरकारी स्कूलों को मजबूत करने की जरूरत नहीं है?