सोचिए अगर एक दिन इंस्टाग्राम की रील्स, वॉट्सएप की चैट्स और फेसबुक की यादें अचानक आपकी स्क्रीन से गायब हो जाएं! ऐसा डरावना लेकिन मुमकिन परिदृश्य अब हकीकत बनता दिख रहा है। अमेरिका की अदालत में टेक दिग्गज Meta और इसके सीईओ मार्क जुकरबर्ग के खिलाफ इतिहास का सबसे बड़ा मुकदमा शुरू हो चुका है। इस केस की गंभीरता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इसका अंजाम 1.3 ट्रिलियन डॉलर की कंपनी के टुकड़े होने तक जा सकता है। सवाल यही है – क्या अब इंस्टाग्राम और वॉट्सएप मेटा से अलग हो जाएंगे?
Meta पर FTC का वार – एकाधिकार की रणनीति बेनकाब
इस मुकदमे की शुरुआत 2020 में हुई थी, जब अमेरिका की फेडरल ट्रेड कमीशन (FTC) और 46 राज्यों ने मिलकर Meta के खिलाफ केस दर्ज किया। आरोप लगाया गया कि Meta ने प्रतिस्पर्धा को खत्म करने के लिए “Buy or Bury” की रणनीति अपनाई – यानी या तो प्रतियोगी कंपनियों को खरीद लिया या फिर उन्हें खत्म कर दिया। 2012 में इंस्टाग्राम और 2014 में वॉट्सएप की खरीद को इसी रणनीति का हिस्सा माना गया। FTC का दावा है कि Meta ने सोशल मीडिया स्पेस को अपने नियंत्रण में रखने के लिए छोटे स्टार्टअप्स का दम घोंट दिया।
अदालत में पेश हुए जुकरबर्ग – दी सफाई, किया बचाव
14 अप्रैल को इस केस की सुनवाई में मार्क जुकरबर्ग ने 7 घंटे तक गवाही दी। उन्होंने कहा कि मेटा ने इंस्टाग्राम और वॉट्सएप को खरीदकर उन्हें पहले से बेहतर बनाया, दुनियाभर में फैलाया और यूजर्स को मुफ्त सेवाएं दीं। जुकरबर्ग ने यह भी तर्क दिया कि सोशल मीडिया में TikTok, YouTube, iMessage जैसे कई बड़े खिलाड़ी हैं, इसलिए Meta पर एकाधिकार का आरोप तर्कहीन है। उन्होंने कहा, “हम बाजार को कंट्रोल नहीं करते – हम इनोवेशन करते हैं।”
FTC की मांग – मेटा को तोड़ो और खरीददारी पर लगाम लगाओ
FTC ने अदालत से मांग की है कि Meta को आदेश दिया जाए कि वह इंस्टाग्राम और वॉट्सएप को एक स्वतंत्र कंपनी के रूप में अलग कर दे। साथ ही, भविष्य में Meta को किसी भी प्रतियोगी कंपनी को खरीदने से पहले इजाजत लेना अनिवार्य बनाया जाए। इसके अलावा FTC यह भी चाहती है कि Meta उन नीतियों को बंद करे जो छोटे स्टार्टअप्स के विकास में बाधा बनती हैं। कोर्ट में प्रस्तुत किए गए दस्तावेजों में मार्क जुकरबर्ग के पुराने ईमेल भी शामिल हैं, जिनमें उन्होंने इंस्टाग्राम को “फेसबुक के लिए खतरा” बताया था।
भारत पर भी असर – क्या होगा डिजिटल भविष्य का नया चेहरा?
यह मुकदमा सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं है, इसका प्रभाव भारत जैसे देशों पर भी पड़ेगा, जहां करोड़ों लोग Meta के प्लेटफॉर्म्स का इस्तेमाल करते हैं। अगर Meta को विभाजित किया गया, तो इसका असर यूजर एक्सपीरियंस, डेटा पॉलिसी, और विज्ञापन मॉडल पर पड़ेगा। यह सवाल भी उठता है कि क्या भारत में भी टेक दिग्गजों के खिलाफ ऐसे मुकदमे देखे जाएंगे? क्या यह डिजिटल साम्राज्य के अंत की शुरुआत है या एक नई तकनीकी क्रांति का आरंभ? फिलहाल दुनिया इस मुकदमे की दिशा को टकटकी लगाए देख रही है।