क्या सरकार डॉक्टरों की समस्याओं की अनदेखी कर रही है?
बिहार में आज से तीन दिनों के लिए सभी सरकारी अस्पतालों की ओपीडी सेवाएं ठप हो गई हैं। यह स्थिति स्वास्थ्य व्यवस्था के चरमराने की तरफ इशारा कर रही है या इसके पीछे कोई बड़ी राजनीतिक चाल है? मरीज परेशान हैं, डॉक्टर नाराज हैं, लेकिन सरकार अब तक चुप है। आखिर इस मुद्दे को गंभीरता से क्यों नहीं लिया जा रहा है?
डॉक्टरों की नाराजगी की असली वजह क्या?
भासा प्रवक्ता डॉ. विनय कुमार का कहना है कि डॉक्टरों की समस्याओं को लेकर स्वास्थ्य मंत्री और स्वास्थ्य विभाग को कई बार पत्र लिखा गया, लेकिन सरकार ने इसे नजरअंदाज कर दिया।
डॉक्टरों की मुख्य मांगें:
✔️ बायोमेट्रिक अटेंडेंस की अनिवार्यता पर पुनर्विचार
✔️ प्रशासनिक उत्पीड़न और वेतन में देरी को समाप्त करना
✔️ पर्याप्त स्टाफ और संसाधनों की उपलब्धता
✔️ गृह जिले में तैनाती की सुविधा
✔️ डॉक्टरों की सुरक्षा सुनिश्चित करना
क्या ये मांगे इतनी ज्यादा हैं कि सरकार को इन्हें अनदेखा करना पड़ रहा है, या फिर सरकार किसी बड़ी रणनीति के तहत इसे टाल रही है?
क्या सरकार डॉक्टरों की अनदेखी करके जनता को मुसीबत में डाल रही है?
डॉक्टरों का आरोप है कि गोपालगंज, शिवहर और मधुबनी जैसे जिलों में वेतन रोका जा रहा है और प्रशासन द्वारा उत्पीड़न किया जा रहा है। ऐसे में यह सवाल उठता है कि सरकार डॉक्टरों को किनारे कर स्वास्थ्य सेवा को कमजोर करने की साजिश तो नहीं कर रही?
तीन दिन बाद बड़ा कदम उठाएंगे डॉक्टर?
भासा प्रवक्ता का कहना है कि अगर 29 मार्च तक कोई ठोस समाधान नहीं निकला, तो डॉक्टर और बड़ा कदम उठाने पर मजबूर हो जाएंगे। क्या इसका मतलब अनिश्चितकालीन हड़ताल हो सकता है?
सोचने वाली बात: अगर डॉक्टरों की जायज मांगों पर विचार नहीं किया गया, तो आने वाले समय में बिहार की स्वास्थ्य सेवाओं का क्या होगा?
जनता की राय:
❓ क्या सरकार को डॉक्टरों की मांगें मान लेनी चाहिए?
❓ क्या यह हड़ताल मरीजों के हित में है या नुकसानदायक?
❓ सरकार की चुप्पी किस ओर इशारा कर रही है?