वाराणसी में मसान की होली पर विवाद: परंपरा या विकृति?

प्रस्तावना

वाराणसी, जिसे मोक्ष की नगरी कहा जाता है, अपने धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजनों के लिए प्रसिद्ध है। यहां गंगा के घाटों पर होने वाले विभिन्न उत्सवों की अपनी अलग पहचान है, लेकिन हाल ही में महाश्मशान घाट पर आयोजित होने वाली ‘मसान की होली’ को लेकर विवाद खड़ा हो गया है। 11 मार्च को होने वाले इस आयोजन का कई हिंदू संगठनों ने विरोध किया है। उनका तर्क है कि शोक और ज्ञान के स्थल पर हर्षोल्लास का आयोजन उचित नहीं है।


मसान की होली: परंपरा या नई प्रथा?

काशी विद्वत परिषद और विश्व वैदिक सनातन न्यास जैसे संगठनों का कहना है कि मसान की होली कोई पारंपरिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह एक हालिया प्रचारित घटना है, जिसका धार्मिक ग्रंथों में कोई उल्लेख नहीं मिलता। विद्वानों के अनुसार, शास्त्रों में ऐसा कोई विधान नहीं कि महाश्मशान घाट पर होली खेली जाए।

📊 धार्मिक मान्यताओं की दृष्टि से आयोजन का विश्लेषण

विषय परंपरा अनुसार दृष्टिकोण वर्तमान आयोजन की स्थिति
शास्त्रों में उल्लेख नहीं मिलता हालिया प्रचलन
सामाजिक स्वीकृति परंपरागत नहीं विवादास्पद
धार्मिक उद्देश्य शांति और ध्यान का स्थान मनोरंजन में बदलता आयोजन
सदियों पुरानी प्रथा नहीं हाल के वर्षों में प्रचलित

काशी विद्वानों का तर्क है कि साधु-संत अपने मठों और आश्रमों में विधि-विधान से होली खेलते हैं, लेकिन उसे इस प्रकार सार्वजनिक रूप से श्मशान घाट पर करना गलत है।


क्या यह काशी की परंपरा है या सुनियोजित आयोजन?

विरोध करने वाले संगठन इस आयोजन को धार्मिक भावना से खिलवाड़ मानते हैं। उनका कहना है कि मसान की होली को काशी की परंपरा कहकर पेश करना एक सुनियोजित प्रयास है।

  • किसी के प्रियजन का अंतिम संस्कार जिस स्थान पर हो रहा हो, वहां रंग-गुलाल और भस्म उड़ाना असंवेदनशीलता है।
  • लोगों को गुमराह करने के लिए यह कहा जा रहा है कि यह भगवान शंकर की परंपरा है, जबकि यह तथ्य धार्मिक ग्रंथों से मेल नहीं खाता।
  • मोबाइल कैमरों के लिए इस आयोजन का प्रचार किया जाना धार्मिक मर्यादा के विरुद्ध है।

क्या भजन और शास्त्रीय गीत से आयोजन को मान्यता मिल सकती है?

वाराणसी के प्रसिद्ध शास्त्रीय गायक छन्नूलाल मिश्र द्वारा गाए गए गीत ‘होली खेले मसाने में दिगंबर…’ के कारण कई लोगों को यह आयोजन परंपरा से जुड़ा हुआ प्रतीत होता है। लेकिन विद्वानों का मानना है कि गीत और साहित्य की कल्पना को धार्मिक परंपरा का रूप देना अनुचित है।

तथ्य वास्तविकता
शास्त्रीय गीतों में भावनात्मक तत्व होते हैं वे धार्मिक परंपराओं का प्रमाण नहीं होते
भगवान शिव को शमशान भूमि का वासी माना जाता है लेकिन आम गृहस्थ को उनका अनुकरण नहीं करना चाहिए
संगीत में कल्पना और दर्शन होता है इसे वास्तविक धार्मिक अनुष्ठान नहीं माना जा सकता

निष्कर्ष: आस्था या अंधविश्वास?

वाराणसी में मसान की होली का आयोजन विवादों के घेरे में है। हिंदू संगठनों और काशी विद्वानों ने इसे धर्मविरुद्ध और अमर्यादित बताया है। उनका कहना है कि इस आयोजन को परंपरा कहना धार्मिक ग़लतफ़हमी और सामाजिक अव्यवस्था को जन्म दे सकता है।

क्या यह आयोजन धर्म की आड़ में एक नया प्रचलन मात्र है, या फिर यह वास्तव में वाराणसी की संस्कृति का हिस्सा है? यह सवाल अभी भी बहस का विषय बना हुआ है।

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