- ध्यान मंत्र
मैं मनोवांछित लाभ के लिए मस्तक पर अर्धचंद्र धारण करने वाली वृष पर आरूढ़ होने वाली शूलधारिणी यशस्विनी शैलपुत्री दुर्गा की वंदना करता हूं
- दुर्गतिनाशिनी दुर्गा – 1
नवरात्र के अवसर पर मां दुर्गा की उपासना भारतीय संस्कृति की गौरवमई आधार पीठीका है । ऐश्वर्य तथा पराक्रम स्वरूप एवं इन दोनों को प्रदान करने वाली मां दुर्गा की शक्ति नित्य के व्यवहारिक जीवन में आपदाओं का निवारण कर ज्ञान बल क्रियाशक्ति प्रदान कर धर्म अर्थ काम कि याचक की इच्छा से भी अधिक प्रदान कर जीवन को लौकिक सुखों से धन्य बना देती है . मां के उपासक का व्यक्तित्व शब्द सशक्त निर्मल एवं उज्जवल फिरती से सुरभीत हो जाता है तथा अलौकिक परमानंद को प्राप्त कर मुक्ति का अधिकारी हो जाता है।
इसलिए देवी भागवत में कहा गया है सच्चिदानंद स्वरूप परमेश्वरी कौन है । इस संबंध में देवर्षि नारद जी की जिज्ञासा को शांत करते हुए भगवान नारायण ने कहा था । कि देवी नारायणी शक्ति नित्य सनातनी ब्रह्मलीला प्रकृति है । अग्नि में दाहकता चंद्र तथा पद्म में शोभा और रवि में प्रभा की भांति वह आत्मा से युक्त है । जैसे स्वर्ण के बिना स्वर्णकार अलंकार तथा मिट्टी के बिना कुम्हार कलर्स का निर्माण नहीं कर सकता । उसी प्रकार सर्वशक्तिस्वरूपा प्रकृति ( दुर्गा ) के बिना सृष्टिकर्ता सृष्टि का निर्माण नहीं कर सकता । इसलिए आचार्य शंकर की दृष्टि में इस परमेश्वरी की उपासना हरि ( विष्णु ) , हर (शिव ) तथा विरिंचि ( ब्रह्मा) सभी करते हैं । शिव शक्ति से ( इ-शक्ति) युक्त होने पर ही समर्थ होते हैं। ईशक्ति से हीन शिव मात्र शव रहते हैं । वह स्पंदनरहित हो जाते हैं। अतः नवरात्र के अवसर पर दुर्गा टीना शनि दुर्गतिनाशिनी दुर्गा की आराधना करना चाहिए । उनकी कृपा से मनुष्य की निश्चित अभीष्ट सिद्धि होती है । प्रसिद्धि है कलौ चंडी विनायकौ कलीयुग में देवी चंडी और गणेश प्रत्यक्ष फल देते !